Wednesday, December 24, 2014

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तुम्हारे यादो के धागे ख़ालीपन की सुई मे पिरोकर अपनी तन्हाई से तुम्हारी रूह का झबला सिलते है चंद्रमा की तरह घटती बढती है रोज सिलना पडता है..!

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