हमारे पसंदीदा शायरों में से एक राहत इंदोरी साहब की एक ग़ज़ल हर एक चेहरे को जख्मो का आईना ना कहो ये जिंदगी तो है रहमत, इसे सजा ना कहो ना जाने कौन सी मजबूरीयों का कैदी हो वो साथ छोड़ गया है, तो बेवफा ना कहो ये और बात के दुश्मन हुआ है आज मगर वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा ना कहो हमारे ऐब हमें उंगलियों पर गिनवाओ हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा ना कहो ये शहर वो है जहां राक्षस भी है "राहत" हर एक तराशे हुए बुत को देवता ना कहो - राहत इंदोरी - :Atul!!
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